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भारत की दूसरी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी में घमासान मचा हुआ है । वरिष्ठतम भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी नई पीढी के दबंग नेता नरेन्द्र भाई मोदी के आगमन के साथ ही नेपथ्य में चले गए हैं । यह तो हुआ राजनितिक घटनाक्रम लेकिन ज़रा हम अपने आस पास नजर फेरें तो समझ आता है की नई पीढ़ी तो अब युवा समाज अपने अधिकांश आडवानियों को इसी तरह या इससे भी निर्दयता और बेशर्मी से सहज जीवन से वंचित करता है । बात हो रही है हमारे बुजुर्गों की जिनकी जीवन संध्या आधुनिक तेज और बनावटी लाईफ स्टाइल की चकाचोंध रोशनी में गुम हो जाती है और वे आभाव , भूख , अकेलेपन और अवसाद के अभिशापों में उलझ जाते हैं ।आज बुजुर्गों की दयनीय स्थिति चिंता का विषय है । चिंता का एक और कारण हमारा भविष्य भी है , आज हमारे देश में सबसे अधिक युवा जनसंख्या है और यही जनसंख्या कल के दी बुजुर्ग हो जायेगी , तब हमारे पास निराश्रितों की एक बड़ी संख्या होगी । जाहिर है की हमें आज से तैयारी करनी होगी । आडवाणी के पास तो कुछ ऐसा था जिसे छोड़ कर वे दबाब बना सकते थे लेकिन समाज के उन बुजुर्गों का क्या जिनके पास कुछ भी नहीं होता सिवाय एक भ्रष्ट लोकतंत्र और दोगले आडम्बरी समाज के दिए हुए कड़वे अनुभवों के । आईये जानते हैं कैसे निभा रहे हैं हम बुजुर्गों के प्रति अपना कर्तव्य ।
बुजुर्गों की स्थिति ——–
जहाँ सन १९५१ में बुजुर्गों की संख्या १९.८ मिलियन थी वही सन २००१ में ७६ मिलियन हो गयी । एक अनुमान के मुताबिक २०३० में यह संख्या १९८ मिलियन हो जायेगी । सन १९४७ में जीवन प्रत्याशा २९ वर्ष थी जो अब ६३ वर्ष हो चुकी है । तेजी से बढते शहरीकरण और बदलती जीवनशैली में अनिवार्य रूप से संयुक्त परिवारों की परम्परा टूटने लगी है । ऐसे में बुजुर्ग सबसे अधिक उपेक्षित पारिवारिक सदस्य के रूप में सामने आये हैं ।
प्रमुख समस्याएं ———-
१. आर्थिक समस्या ,
२. शारीरिक समस्या ,
३. मानसिक-सामाजिक समस्या ।
वृद्धावस्था कल्याण ——–
वरिष्ठ नागरिक अधिनियम ——सन २००७ में लागू इस अधिनियम की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं –
० ऐसे मातापिता जो अपनी आय से खर्च नहीं उठा सकते हैं वे अपने वयस्क बच्चों से रख रखाव की मांग कर सकते हैं ।
० माता-पिता में जैविक,गोद लिए गए और सौतेले सभी शामिल हैं ।
० संतानहीन वरिष्ठ नागरिक अपने उत्तराधिकारी-रिश्तेदार से भी इसी प्रकार की मांग कर सकता है ।
० रख रखाव का आवेदन व्यक्ति स्वयं , किसी अधिकृत या किसी एनजीओ के माध्यम से दे सकता है ।
० ट्रिब्यूनल द्वारा स्वयं भी कार्यवाही की जा सकती है ।
० बुजुर्गों की अवहेलना पाने की स्थिति में ट्रिब्यूनल प्रतिमाह १ ० ० ० ० रूपये अधिकतम भत्ता राशी तय कर सकता है ।
०रज्य सरकार ऐसे कई ट्रिब्यूनल स्थापित कर सकती है । वह प्रत्येक जिले में एक अपीलीय ट्रिब्यूनल भी गठित करेगी ।
० दोषी व्यक्ति को ३ माह कैद या ५ ० ० ० रुपये जुर्माना का भी प्रावधान है ।
० वृद्धावस्था की व्यवथा और अस्पतालों में विशेष सुविधाओं का भी प्रावधान है ।
सामाजिक सहायता कार्यक्रम —–
यह कार्यक्रम संविधान के अनुच्छेद ४ १ एवं ४ २ के नीति निर्देशक तत्वों के अनुपालन की दिशा में बड़ा कदम है । इसकी शुरुआत १ ५ अगस्त १ ९ ९ ५ को की गयी और १ ९ ९ ८ में इनमें पर्याप्त सुधार किया गया । वरिष्ठों के लिए इस कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेन्शन योजना में केन्द्रीय सहायता उपलब्ध कराती है । इसकी शर्तें हैं —
०उम्र ६ ५ वर्ष या अधिक ,
० आर्थिक रूप से अक्षम हों ,
० पेंशन राशि ७ ५ रुपये प्रति माह है ।
वृद्धजनों की राष्ट्रीय नीति —–
यह सन १ ९ ९ ९ में शुरू की गयी । यह वृद्धावस्था एवं इसकी सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करती है जैसे परिवारों को प्रोत्साहित करना , बुजुर्गों के स्वास्थ्य एवं संरक्षण और इसके लिए अनुसंधान करना आदि ।
राष्ट्रीय वृद्ध परिषद् ——
इसका गठन सन २ ० ० ५ में वृद्धों के कल्याण कार्यक्रम और नीतियों पर सलाह देने के लिए की गई थी । इस तरह के कार्य के लिए यह सर्वोच्च संस्था है ।
वृद्धों के लिए समन्वित कार्यक्रम —-
इस योजना के अन्तर्गत वृद्धाश्रम बनाने, उनकी देखभाल करने, अन्य सेवायें उपलब्ध कराने के लिए गैर सरकारी संगठनों , पंचायती राज्य संस्थाओं और स्थानीय निकायों को परियोजना लगत का ९ ० प्रतिशत व्यय उपलब्ध कराया जाता है । इन कार्यक्रमों के अंतर्गत वृद्धों के लिए भोजन,आश्रय,और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना , अंतर पीढ़ी के सहज संबंधों के लिए कार्यक्रम संचालित करना , वृद्धावस्था के लिए अनुसंधान , साक्षरता एवं जागरूकता के लिए प्रयास करना आदि हैं ।
अन्य कल्याण कार्यक्रम —–
६० वर्ष से अधिक के वरिष्ठों के लिए रेलवे में पुरुषों हेतु ३० प्रतिशत एवं महिला हेतु ५० प्रतिशत किराए में छोट है । बैंकों में भी अधिक ब्याज इन्हें मिलता है । इसके अतिरिक्त इनके लिए विशिष्ट बचत योजनायें भी चलायी जा रहीं हैं । इन तमाम सरकारी और गैर सरकारी उपायों के वावजूद भी क्या हम अपने बुजुर्गों को एक रहत भरी जीवन संध्या दे पा रहे हैं । सवाल तो यह भी है कि क्या हम इन उपायों से इंसान का आखिरी सुकून खोज सकते हैं ? शायद नहीं , क्योंकि इंसानों का आखिरी सहारा तो इन्सान ही है । उपाय साफ़ है – मानवीय प्रयास । हमें पैसे से अधिक संस्कारों और मूल्यों का निवेश करना होगा । सरकारी प्रयास अपनी जगह हैं , परिवारिक और सामाजिक प्रयास अति आवश्यक हैं । हमारी आधुनिक , जीवनशैली शिक्षा प्रणाली और बेसुध सामाजिक व्यवस्था नवीन पीदियों को एक बनावटी जीवन प्रदान कर रहीं हैं जिनमें संवेदनशीलता कहीं नहीं है । संस्कार हमारी महान संस्कृतिक विरासत हैं लेकिन हमने जातिवाद , वर्गवाद , दहेज़ , छुआछूत , कन्या-हीनता जैसी कुरीतियों को ही अपनी संस्कृति मानने की भारी भूल की है । अपने वरिष्ठजनों को एक बेहतर जीवन संध्या देने के लिए हमें अपने बच्चों को अधिक मानवीय और संस्कारी बनाना होगा और यह कार्य परिवार,समाज और शिक्षा मिलकर ही कर सकते हैं ।
आडवाणी जमाने में और भी हैं……(सामयिक आलेख : अरुण सोनी, उल्दन )
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