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कमीशनखोरी में उलझी शिक्षा की गुणवत्ता

khushiyan
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विद्यालय खुलने में अभी वक्त है , लेकिन किताबों का बाजार जोर पकड़ने लगा है । निजी विद्यालयों की भारी भरकम रंगीन पुस्तकों की लम्बी सूची अभिभावकों की जेब कतराने के लिए अपनी धार तेज किये बैठी है । शिक्षा के इस आर्थिक विद्रूपपन में शिक्षा की गुणवत्ता के साथ खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है ।

अमानक पाठ्य सामग्री —–

अधिकांश निजी प्रकाशक आर्थिक लाभ को ध्यान में रखकर सस्ती , अमानक या अनुसंधानरहित सामग्री से पुस्तकों का निर्माण करते हैं ।बाजार इन्हीं गुणवत्ताविहीन पुस्तकों से भरा पडा है । इन पुस्तकों के लेखक भी प्रायः अनुभवहीन और अकुशल लोग ही होते हैं । जबकि ” राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा २००५ ” एक से लेकर बारहवीं तक के पाठ्यक्रम का फ्रेमवर्क तय कर शिक्षा सामग्री की गुणवत्ता तय कर चुकी है । इसी प्रकार ” शिक्षा का अधिकार अधिनियम २०१०” के द्वारा एक साधारण प्राथमिक अध्यापक तक की गुणवत्ता एवं कुशलता को निर्धारित किया जा चुका है । ऐसे में अमानक पुस्तकों की बाजार और विद्यालयों में उपस्थिति शिक्षा के साथ एक बड़ा खिलबाड़ ही है ।

कमीशनखोरी का क्रूर पंजा —–

इन अमानक एवं गुणवत्ताहीन पुस्तकों के जारी प्रचलन का एकमात्र कारण इनके द्वारा दिया जा रहा अंधाधुंध कमीशन है । बाजार के सूत्रों से पता चलता है की ऐसी पुस्तकों कपर ४० से लेकर ६०-७० प्रतिशत तक कमीशन दिया जाता है , जो विक्रेताओं से लेकर सम्बंधित विद्यालयों तक में बँट जाता है ।

विकल्प बेहतर है ——

आप किसी भी अच्छे कोचिंग संस्थान में चले जाइये या किसी ऊंची सेवा परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों से संपर्क कर लीजिये , विषय की बेहतर समझ और प्रमाणिक ज्ञान के लिए एन सी आर टी की ही पुस्तकों का नाम लिया जाता है । आई ए एस टॉपर्स तक यह सलाह देते हैं की विषय की प्राथमिक जानकारी हेतू एन सी ई आर टी की जूनियर , १०वीं और १२वीं की पुस्तकें पढनी चाहिए । इसका कारण भी स्पष्ट है , ये पुस्तकें देश के अग्रणी विद्वानों द्वारा व्यापक विचार-विमर्श और अनुसंधानों के पश्चात निर्मित होती है । और ना सिर्फ एन सी ई आर टी बल्कि राज्य बोर्डों की पुस्तकें भी इतनी ही लाभदायक एवं प्रमाणिक हैं । उत्तर प्रदेश की जूनियर और अन्य उच्च कक्षाओं की पुस्तकें , निजी प्रकाशकों की भारी-भरकम और रंग-बिरंगी पुस्तकों से कहीं अधिक गुणवत्तापूर्ण और मानकीकृत हैं ।

सरकारी विद्यालयों में तो राज्य बोर्डों की पुस्तकें चलती ही हैं , निजी विद्यालयों में पड़ने वाले बच्चों के अभिभावकों चाहिए की वे विद्यालयों पर एन सी ई आर टी की पुस्तकों को प्रचलित करने का दबाव बनाएं । हालांकि निजी विद्यालयों के पास कई बहाने भी हैं , जैसे की निजी पुस्तकों पर भी स्पष्ट लिखा होता है की सी बी एस ई या एन सी ई आर टी पाठ्यक्रम पर आधारित । एक और बहाना है कि बाजार में एन सी ई आर टी की पुस्तकें उपलब्ध ही नहीं हैं । यह सिर्फ भरमाना ही है । भला जब मौलिक एन सी ई आअर टी की पुस्तकें ही उपलब्ध हैं तो आधरित पुद्तकों का बोझ क्यों डाला जाये । फिर जब बाजार में एन सी ई आर टी की पुस्तकों की मांग बदने लगेगी तो उनकी पूर्ती भी स्वतः ही होने लगेगी । अतः अपने बच्चों के लिए ऊंचे सपने देखने वाले अभिभावकों को कमीशनखोरी के इस दुश्चक्र को तोड़ते हुए निजी विद्यालयों पर एन सी ई आर टी की प्रमाणिक पुस्तकों के प्रचलन के लिए अवश्य ही दबाव बनाना चाहिए । अरे भाई ! कल के दिन हमारे बच्चे प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी के लिए इन्हीं पुस्तकों की और लौटें , उससे बेहतर तो यही है की आज से ही वह इनसे परिचित हो जाएँ । सभी विद्यर्थियों को शुभकामनाएं ।

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